Tuesday, January 23, 2007

ये क्या है !

कांव कांव गूँज़ी आवाज़ ,
नहीं छुपा है कोई राज़ ,
हो गया देखो पर्दाफाश ,
रौशन है सारा आकाश .

घड़ी की सुईयां टिक टिक टिक ,
हो गयी हैं कितनी निर्भीक् ,
सब हैं सपनों में खोए ,
घड़ियां फिर भी ना सोएं .

टिटि टी टिंग ,
टिटि टी टिंग ,
टिटि टी टिंग ,
टिटि टी टिंग !

सात बज़े बज़ गया अलार्म ,
नीन्द को क्यों कर दिया हराम ,
क्या होगा इसका अंज़ाम,धड़ाम ,
हो गया काम तमाम .

नीन्द अचानक जब ये टूटी ,'
आठ बज गए चीखें छूटीं ,
पैर में मोजे, मुँह में ब्रश है ,
बाथरूम में हो गई रश है ,
चेहरा धोके बैग सम्भाला ,
चार ब्रेडों को मुँह में डाला .

पिछ्ला सब कुछ भूल चले हैं ,
साईकिल के पीछे झूल चले हैं ,
पहले केवल दस थे बच्चे ,
बाकी सब तो लेट हैं पहुंचे ,
प्रॉफ को लगता रोज है झटका ,
इनके बीच ही क्यों मुझे पटका .

पिछला लेक्चर किया नहीं था ,
टाइम कुछ भी दिया नहीं था ,
आज का कुछ भी समझ न आए ,
लेक्चर यारों हमें रुलाए ,
आखिरी मिनट में आई जम्हाई ,
मिली खुशी, है राहत पाई .

फिज़िक्स पढ़ेंगे दौड़े भागे ,
दोस्तों की भी सीटें टांगे ,
( किसी और को दोष दें काहें ,
कुर्सी मोह तो सब में समाए . )

सोचा है अब ध्यान लगेगा ,
भेजे में अब कुछ तो घुसेगा ,
इंस्ट्र्क्टर बोले समझाये ,
नीन्द से हमको कौन बचाए ,
पलकें भारी - झट से झपकीं ,
कंधे झूले , गर्दन टपकी .

घंटी बजी तो हम भरपाए ,
मैथ्स से हमको कोई बचाए ,
मदद की कोई आस नहीं है ,
सब्र हमारे पास नहीं है .

हम तो देखो रूम पे आए ,
हफ्तों हो गए हमे नहाए ,
शेव करें , खुद को चमकाएं ,
आराम ज़रा फिर हम फरमाएं .

प्रॉफ हमारे दुश्मन हैं ,
अटेंडेंस का क़्वेश्चन है ,
डी 0 में ज़ाना पड़ेगा ,
दौड़ के फिर हमें आना पड़ेगा .

आया देखा ट्रैफिक जाम ,
मेस का खाना हुआ हराम ,
शर्ट पे अपनी दाल उड़ेली ,
नमक था लेना, चीनी लेली .

अरे अभी तो लैब है अपनी ,
फ्रॉड की हमको माला ज़पनी ,
वाइवा में ज़ब भी हम हारें ,
टी ए को तब मस्का मारें .

लैब से आ गए अब हम यारों ,
हो गए खाने चित हम चारों ,
आठ बज़े तक मरे रहे हम ,
उठे तो देखो भूल गए गम .

अब तो देखो धूम मची है ,
हमने दुनिया नयी रची है ,
टी वी , डब्बे संग हमारे ,
गाने भी हैं कुछ को प्यारे .

कहीं पे बुल्ला कटता है ,
कहीं पे हल्ला मचता है ,
बॉट में हुआ बवाल है ,
क्रिकेट नहीं तो फुटबाल है .

चारों तरफ ही मस्ती है ,
सारी जनता फंसती है ,
अब तो कोई रोक नहीं ,
तीन बज़ गए टोक नहीं ,
कौवे बोले भोर हो गई ,
सारी ज़नता अब तो सो गई .

घड़ियां फिर चलने लगती हैं ,
सात पे सूँई फिर दिखती है .
नीन्द को हमने धूल चटाई ,
फिर भी,बकुल कहैं लव कर लो भाई !

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