Tuesday, January 23, 2007

हिंदी लिखने के तरीके

इस समय मैं जो तरीका अपना रहा हूं वो है बरहा साफ़्ट्वेयर - (I love this method) http://www.baraha.com/BarahaIME.htm

डाउनलोड कीजिए - कीबोर्ड शार्टकट प्रेस कीजिए ऒर शुरु हो जाइए . जहां मन करे हिंदी में टाइप कीजिए.

दूसरा तरीका - http://kaulonline.com/uninagari/

तीसरा तरीका -

शुशा फ़ान्ट (http://www.abhivyakti-hindi.org/abhi/hindi_shusha_fonts_dl_help.htm)

उठाइए और लिखना शुरु कीजिए. http://manaskriti.com/su/ से कन्वर्टर उठाइए और अपने शुशा

टेक्स्ट को कन्वर्ट कर लीजिए युनिकोड में.

हम सब नौटंकी करते हैं

बहुत ही पहले से हम सबने सुना है , समझा , जाना है ।
जीवन सारा इक नाटक है , हम सबने इसको माना है ।।
सभी यहाँ जीवन-नाटक के पात्र निभाया करते हैं ,
लेकिन देखो हम कैसे हर नाटक में जीवन भरते हैं ,
नाटक से जीवन में कैसे हम हलचल लाया करते हैं ।
हम सब नौटंकी करते हैं ।।

विश्वास आस में भर-भर के ,
उल्लास से प्यास बुझाकर के ,
परिहास-हास से मिल-जुलकर ,
अनवरत प्रयास लगाकर के ,
उच्छ्वास समाज का हरते हैं ।
कभी चीख-चीख कर राहों में ,
या फिर परदों की छाँवों में ,
हम आँखें डाल निगाहों में ,
हर दिल पे दस्तक देते हैं ।
हम यूँ नौटंकी करते हैं ।।

जब रात LHC के नीचे अपनी आवाज खनकती है ,
हम सबके जोश की गर्मी से सर्दी भी पिघला करती है ,
चंदा-तारे चेहरे के भावों से कुंठित हो जाते हैं ,
तो भोर में हम कोशिश करके अपनी script बनाते हैं ।
तालियों के शोर जब हर ओर गूँजा करते हैं ,
सारी थकान को छोड , भाव-विभोर होकर ,
इक नए उत्साह में सराबोर होकर ,
हम फिर से नौटंकी करते हैं ।।

तलवार कलम की धार नहीं ,
केवल आवाज की धार सही ,
ललकारो तो हुँकार सही ,
मुस्काओ तो है प्यार सही ।
पर अदा वही जो श्रोता के
दिल पर कर जाए वार सही ।
जब आन पड़े तो हम देखो कविता से आहट करते हैं ,
हम तो नौटंकी करते हैं ।।

मधुर स्मृतियाँ

मधुर स्मृतियाँ ,
आह ! वो मधुर स्मृतियाँ
जो कभी मेरे जीवन की
मृदुल सच्चाइयाँ थीं ,
आज कुछ बिखरे हुए पन्नों में सिमटी हुई ,
चन्द तस्वीरों के आवरण में
अपने सूक्ष्म रूप को छिपाती-दिखाती
मेरे मन में आज फिर इक हूक सी जगाती हैं ,
मेरे दिल को उदास कर जाती हैं |

मेरा दिल जो अब तक प्रसन्नता का आवरण ओढ़े हुए ,
भावपूणर् दोस्तों के बीच ,
मौजों के , मस्तियों के नीचे ,
यादों की आहों को दबाए हुए था ,
आज अचानक
तनहाइयों में सिसक पड़ा ;
एक गुबार सा उठा
जिसने मेरे मन-मस्तिष्क को
झकझोर कर रख दिया और
मैं फिर से उन स्वप्निल क्षणों को
जीने के लिए
बेताब हो उठा |

सच मानिए मेरी दिली तमन्ना है
कि मैं फिर से उन बीती यादों को ,
बचपन के , स्कूल के उन क्षणों को
उस मार को ,
दीदी के साथ की गई तकरार को ,
मम्मी-पापा के उस अनूठे प्यार को
साकार कर सकूँ |

पर मुझे मालूम है कि समय कभी वापस नही लौटता |
मैं भी उन यादों को फिर से जी नहीं सकता ,
पर हाँ ,
मैं उनके सहारे , कुछ ही पलों के लिए सही ,
एक नए जीवन ,
एक नई दुनिया में पदापर्ण कर सकता हूँ |
इसीलिए ,
उन मधुर स्मृतियों में खोए हुए इस मन
से निकलती आवाज को
मैं अपनी लेखनी से एक यादगार रूप दे रहा हूँ |

उम्मीद है , वे आँखें
जो आज अचानक ही बोझिल हो उठीं थीं ,
आज एक नया स्वप्न देखेंगी
और एक नई आशा के साथ
मेरे सुनहरे लक्ष्य को पूरा करने के लिए
मेरी हर संभव सहायता करेंगी ,
ताकि फिर कभी अगर ऐसे क्षणों का आगमन हो
तो मैं मुस्कुरा सकूँ कि
इन्ही कठिन परिस्थतियों के कारण आज मैं
यहाँ पर खड़ा हूँ ,
और खोया हूँ एक बार फिर
उन्ही मधुर स्मृतियों में !!

ये क्या है !

कांव कांव गूँज़ी आवाज़ ,
नहीं छुपा है कोई राज़ ,
हो गया देखो पर्दाफाश ,
रौशन है सारा आकाश .

घड़ी की सुईयां टिक टिक टिक ,
हो गयी हैं कितनी निर्भीक् ,
सब हैं सपनों में खोए ,
घड़ियां फिर भी ना सोएं .

टिटि टी टिंग ,
टिटि टी टिंग ,
टिटि टी टिंग ,
टिटि टी टिंग !

सात बज़े बज़ गया अलार्म ,
नीन्द को क्यों कर दिया हराम ,
क्या होगा इसका अंज़ाम,धड़ाम ,
हो गया काम तमाम .

नीन्द अचानक जब ये टूटी ,'
आठ बज गए चीखें छूटीं ,
पैर में मोजे, मुँह में ब्रश है ,
बाथरूम में हो गई रश है ,
चेहरा धोके बैग सम्भाला ,
चार ब्रेडों को मुँह में डाला .

पिछ्ला सब कुछ भूल चले हैं ,
साईकिल के पीछे झूल चले हैं ,
पहले केवल दस थे बच्चे ,
बाकी सब तो लेट हैं पहुंचे ,
प्रॉफ को लगता रोज है झटका ,
इनके बीच ही क्यों मुझे पटका .

पिछला लेक्चर किया नहीं था ,
टाइम कुछ भी दिया नहीं था ,
आज का कुछ भी समझ न आए ,
लेक्चर यारों हमें रुलाए ,
आखिरी मिनट में आई जम्हाई ,
मिली खुशी, है राहत पाई .

फिज़िक्स पढ़ेंगे दौड़े भागे ,
दोस्तों की भी सीटें टांगे ,
( किसी और को दोष दें काहें ,
कुर्सी मोह तो सब में समाए . )

सोचा है अब ध्यान लगेगा ,
भेजे में अब कुछ तो घुसेगा ,
इंस्ट्र्क्टर बोले समझाये ,
नीन्द से हमको कौन बचाए ,
पलकें भारी - झट से झपकीं ,
कंधे झूले , गर्दन टपकी .

घंटी बजी तो हम भरपाए ,
मैथ्स से हमको कोई बचाए ,
मदद की कोई आस नहीं है ,
सब्र हमारे पास नहीं है .

हम तो देखो रूम पे आए ,
हफ्तों हो गए हमे नहाए ,
शेव करें , खुद को चमकाएं ,
आराम ज़रा फिर हम फरमाएं .

प्रॉफ हमारे दुश्मन हैं ,
अटेंडेंस का क़्वेश्चन है ,
डी 0 में ज़ाना पड़ेगा ,
दौड़ के फिर हमें आना पड़ेगा .

आया देखा ट्रैफिक जाम ,
मेस का खाना हुआ हराम ,
शर्ट पे अपनी दाल उड़ेली ,
नमक था लेना, चीनी लेली .

अरे अभी तो लैब है अपनी ,
फ्रॉड की हमको माला ज़पनी ,
वाइवा में ज़ब भी हम हारें ,
टी ए को तब मस्का मारें .

लैब से आ गए अब हम यारों ,
हो गए खाने चित हम चारों ,
आठ बज़े तक मरे रहे हम ,
उठे तो देखो भूल गए गम .

अब तो देखो धूम मची है ,
हमने दुनिया नयी रची है ,
टी वी , डब्बे संग हमारे ,
गाने भी हैं कुछ को प्यारे .

कहीं पे बुल्ला कटता है ,
कहीं पे हल्ला मचता है ,
बॉट में हुआ बवाल है ,
क्रिकेट नहीं तो फुटबाल है .

चारों तरफ ही मस्ती है ,
सारी जनता फंसती है ,
अब तो कोई रोक नहीं ,
तीन बज़ गए टोक नहीं ,
कौवे बोले भोर हो गई ,
सारी ज़नता अब तो सो गई .

घड़ियां फिर चलने लगती हैं ,
सात पे सूँई फिर दिखती है .
नीन्द को हमने धूल चटाई ,
फिर भी,बकुल कहैं लव कर लो भाई !