Friday, December 14, 2007

एक अक्स है कि काँप रहा है शराब में

कब से हैं एक हर्फ़ पे नज़रें जमीं हुईं
वो पढ़ रहा हूँ जो नहीं लिक्खा किताब में
[हर्फ़ = a letter of the alphabet]

पानी नहीं कि अपने ही चेहरे को देख लूँ
मन्ज़र ज़मीं के ढूँढता हूँ माहताब में
[मन्ज़र = scene/view; माहताब = Moon]

कब तक रहेगा रूह पे पैराहन-ए-बदन
कब तक हवा असीर रहेगी हुबाब में
[रूह =soul; पैराहन-ए-बदन = dresslike body]
[असीर = imprisoned; हुबाब = bubble]

जीने के साथ मौत का डर है लगा हुआ
ख़ुश्की दिखाई दी है समन्दर को ख़्वाब में
[ख़ुश्की = dryness]

एक याद है कि छीन रही है लबों से जाम
एक अक्स है कि काँप रहा है शराब में

--
शाकेब ज़लाली

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