Wednesday, November 07, 2007

किधर जाना - मख्मूर

बिखरते टूटते लम्हों को अपना हमसफ़र जाना
था इस राह में आख़िर हमें ख़ुद भी बिखर जाना

हवा के दोश पर बादल के टुकड़े की तरह हम हैं
किसी झोंके से पूछेंगे कि है हम को किधर जाना
[दोश=shoulder]

मेरे जलते हुए घर की निशानी बस यही होगी
जहाँ इस शहर में रौशनी देखो ठहर जाना

पस-ए-ज़ुल्मत कोई सूरज हमारा मुन्तज़िर होगा
इसी एक वहम को हम ने चिराग़-ए-रहगुज़र जाना
[पस-ए-ज़ुल्मत=beyond the darkness; मुन्तज़िर=waiting]

दयार-ए-ख़ामशी से कोई रह-रह कर बुलाता है
हमें "मख्मूर" एक दिन है इसी आवाज़ पर जाना
[दयार-ए-ख़ामशी=house of death]

-- "मख्मूर"

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